रविवार, 19 सितंबर 2021

आदि गुरु शंकराचार्य रचित हिंदी काव्यानुवाद सहित

 


(आदि शंकराचार्यरचित हिंदी काव्यानुवाद सहित)

सबिन्दुसिन्धुसुस्खलत्तरङ्गभङ्गरञ्जितं

द्विषत्सु पापजातजातकारिवारिसंयुतम्।

कृतान्तदूतकालभूतभीतिहारिवर्मदे

त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥1

त्वदम्बुलीनदीनमीनदिव्यसम्प्रदायकं

कलौ मलौघभारहारि सर्वतीर्थनायकम्।

सुमच्छकच्छनक्रचक्रचक्रवाकशर्मदे

त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥2

महागभीरनीरपूरपापधूतभूतलं

ध्वनत्समस्तपातकारिदारितापदाचलम्।

जगल्लये महाभये मृकण्डसूनुहर्म्यदे

त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥3

गतं तदैव मे भवं त्वदम्बुवीक्षितं यदा

मृकण्डसूनुशौनकासुरारिसेवि सर्वदा।

पुनर्भवाब्धिजन्मजं भवाब्धिदुःखवर्मदे

त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥4

अलक्षलक्षकिन्नरामरासुरादिपूजितं

सुलक्षनीरतीरधीरपक्षिलक्षकूजितम्।

वसिष्ठसिष्टपिप्पलादिकर्दमादिशर्मदे

त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥5

सनत्कुमारनाचिकेतकश्यपादिषट्पदैः

धृतं स्वकीयमानसेषु नारदादिषट्पदैः।

रवीन्दुरन्तिदेवदेवराजकर्मशर्मदे

त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥6

अलक्षलक्षलक्षपापलक्षसारसायुधं

ततस्तु जीवजन्तुतन्तुभुक्तिमुक्तिदायकम्।

विरञ्चिविष्णुशङ्करस्वकीयधामवर्मदे

त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥7

अहोऽमृतं स्वनं श्रुतं महेशकेशजातटे

किरातसूतवाडवेषु पण्डिते शठे नटे।

दुरन्तपापतापहारिसर्वजन्तुशर्मदे

त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥8

इदं तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये सदा

पठन्ति ते निरन्तरं न यान्ति दुर्गतिं कदा।

सुलभ्य देहदुर्लभं महेशधामगौरवं

पुनर्भवा नरा न वै विलोकयन्ति रैरवम्॥9

त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे॥

इति श्रीमदशंकराचार्य स्वामी विरचितं नर्मदाष्टकं सम्पूर्णं ।

 


श्रीमद आदि शंकराचार्य रचित नर्मदाष्टक

हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा संजीव 'सलिल'

 

उठती-गिरती उदधि-लहर की, जलबूंदों सी मोहक-रंजक

निर्मल सलिल प्रवाहितकर, अरि-पापकर्म की नाशक-भंजक

अरि के कालरूप यमदूतों, को वरदायक मातु वर्मदा.

चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.१.

 

दीन-हीन थे, मीन दिव्य हैं, लीन तुम्हारे जल में होकर.

सकल तीर्थ-नायक हैं तव तट, पाप-ताप कलियुग का धोकर.

कच्छप, मक्र, चक्र, चक्री को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.

चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.२.

अरिपातक को ललकार रहा, थिर-गंभीर प्रवाह नीर का.

आपद पर्वत चूर कर रहा, अन्तक भू पर पाप-पीर का.

महाप्रलय के भय से निर्भय, मारकंडे मुनि हुए हर्म्यदा.

चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.३.

 

मार्कंडे-शौनक ऋषि-मुनिगण, निशिचर-अरि, देवों से सेवित.

विमल सलिल-दर्शन से भागे, भय-डर सारे देवि सुपूजित.

बारम्बार जन्म के दु:ख से, रक्षा करतीं मातु वर्मदा.

चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.४.

 

दृश्य-अदृश्य अनगिनत किन्नर, नर-सुर तुमको पूज रहे हैं.

नीर-तीर जो बसे धीर धर, पक्षी अगणित कूज रहे हैं.

ऋषि वशिष्ठ, पिप्पल, कर्दम को, सुखदायक हे मातु शर्मदा.

चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.५.

 

सनत्कुमार अत्रि नचिकेता, कश्यप आदि संत बन मधुकर.

चरणकमल ध्याते तव निशि-दिन, मनस मंदिर में धारणकर.

शशि-रवि, रन्तिदेव इन्द्रादिक, पाते कर्म-निदेश सर्वदा.

चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.६.

 

दृष्ट-अदृष्ट लाख पापों के, लक्ष्य-भेद का अचूक आयुध.

तटवासी चर-अचर देखकर, भुक्ति-मुक्ति पाते खो सुध-बुध.

ब्रम्हा-विष्णु-सदा शिव को, निज धाम प्रदायक मातु वर्मदा.

चरणकमल में नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.७.

 

महेश-केश से निर्गत निर्मल, 'सलिल' करे यश-गान तुम्हारा.

सूत-किरात, विप्र, शठ-नट को,भेद-भाव बिन तुमने तारा.

पाप-ताप सब दुरंत हरकर, सकल जंतु भाव-पार शर्मदा.

चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.८.

 

श्रद्धासहित निरंतर पढ़ते, तीन समय जो नर्मद-अष्टक.

कभी न होती दुर्गति उनकी, होती सुलभ देह दुर्लभ तक.

रौरव नर्क-पुनः जीवन से, बच-पाते शिव-धाम सर्वदा.

चरणकमल मरण नमन तुम्हारे, स्वीकारो हे देवि नर्मदा.९.

 

श्रीमदआदिशंकराचार्य रचित, संजीव 'सलिल' अनुवादित नर्मदाष्टक पूर्ण.

 

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